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लोकपाल बिल और दलित चिंतन

लोकपाल बिल के माध्यम से टीम अन्ना (किसन बाबुराव हजारे) ने पुरे देश में भ्रस्ताचार के खिलाफ जो एक जंग छेड़ रखी है , वह काबिले तारीफ है. जिस प्रकार से टीम अन्ना ने एक सुनियोजित तरीके से अपना बिगुल इस देश के ब्रस्ट मंत्री , नौकारशाई और सिस्टम के खिलाफ छेड़ा है , उससे पूरा का पूरा सरकारी तंत्र हिल गया है, सरकार कि नींद उड़ गयी है , कि अरे यह क्या हो रहा है, अभी तक तो हम पछ और विपछ के लोग मिलकर के भ्रस्ताचार का हिसाब किताब आपस में कर लिया करते थे , और आम जनता चिल्लाती रहा जाती थी पर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता था? पर यह क्या अब हमारी कारगुजारी पर जनता कि निगाह रहेगी और हम सभी कि जगह जेल में होगी, क्यूंकि कमाई तो पछ और विपछ दोनों लोगो ने कि है तो अब क्या होगा, यही चिंता और बौखलाहट म सरकार कोई निर्णय नहीं ले पा रही कि क्या लोकपाल बिल माने या ना माने? इसी उहापोह म एक ७५ वर्षीय बृध कि जान पे बन आयी है और सरकार है कि तस से मास नहीं हो रही है? अचछा उद्देश्य है अन्ना जी और उनकी टीम का पर सवाल उनसे भी बाकि है , और वो सवाल दलितों का है? जिसका जवाब देना तो आसन नहीं है पर हाँ दलितों के सवाल