भारत की रक्षा नीति और पाकिस्तान

आज जब फिर एक बार नुक्लेअर टेस्ट की बात उठने लगी है, ऐसे में भला पाकिस्तान का आक्लन किये बगैर यह बहस पूरी कैसे हो सकती है, चूँकि एस बार भारत के रक्षा मामलों जो एक नया तूफान ला खडा किया है, वह १९९८ के नुक्लेअर टेस्ट की सफलता पर सवालिया निसान खुद भारत के वैज्ञानिको का है, और इसी वजह से भारत को एक और टेस्ट करने की सलाह दे रहे है. यह मुद्दा तब गर्माया जब रक्षा अनुसन्धान विकास संगठन के वैज्ञानिक के. संथानम ने १९९८ के परमाणु परिछन की सफलता पे सवालिया निसान लगा दिया, मामला यहीं पर शांत हो जाता यदि पुरवा (ex) रास्त्रपति अब्दुल कलम ने संथानम की बातों से आपत्ति की और नुक्लेअर टेस्ट को सफल कहा, ऐसे में संथानम के पक्ष में परमाणु उर्जा आयोग के पूर्व मुखिया होमी नुस्सेर्वांजी सेठना केवल संथानम का पक्ष लिया बल्कि कलम को खरी खोटी बी सुना दी, जिससे की भारत में दो गुट बनते नजर आये, एक वो जो कलम के पक्ष में है और एक वोह जो संथानम पक्ष में है,पर इससे ब्बत बनेगी नहीं, यदि वैज्ञानिको का दल यह मानता है की १९९८ के परिक्षण में कुछ खामियां रह गयी थी और वह परिक्षण पूर्ण सफल नहीं था तो एस बहस में पड़ के ही लॉबी बना के अपने ही देश के वैज्ञानिको के मनोबल कमजोर करते हुवे उनकी बातों को ध्यान में रखकर कुच्छ ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए जिससे की भारत की परमाणु क्षमता पर किसी को किसी भी प्रकार का सके.

भारत को अपने परमाणु नितियोंके बारे में अत्यंत चौकन्ना होने की जरुरत इसलिए भी है, क्यूंकि जब हमारे पडोसी देश (चाइना और पकिस्तान) जिनकी तो मनसा ही ठीक है ही नियति ही, ऐसे में हमें अपनी रक्षा तैयारिओं में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए, अगर हमारे वैज्ञानिक यह मानते है की भारत को एक और नुक्लेअर टेस्ट की जर्रोरत है तो भारत को ऐसी निति बना ही होगी जिससे की भविष्य में किसी भी चुनती का सामना कर सके, पाकिस्तान जो आये दिन कोई कोई खेल भारत के खिलाफ खेलता ही रहता है तब उसकी रक्षा क्षमातावों का सही आकलन करना और भी जरुरी है, यह तो मानाही जा सकता है पाकिस्तान की पूरी रक्षा निति अमेरिका और चाइना के कंधो पर टिकी है और उसकी अर्थव्यवस्था भी जर्जर है, इसके बावजूद वह (पाकिस्तान) आपनी रक्षा नीतियों में कोई कोताही नहीं बरत रहा, ही उसका रक्षा बजट कम हो रहा है, पाकिस्तान के पास ६०-७० परमाणु बम होने की संभावन है, जिसकी चर्चा वह खुद भी करता है, यह पूरी दुनिया जन चुकी है की पाकिस्तान एक गैर जिम्मेदार देश है जिसके पास खुद के लिए कोई प्लानिंग नहीं है, और उपर से कट्टरवाद की मार झेल रहा है, ऐसे में यदि पाकिस्तान की परमाणु फैक्ट्री यदि आतंकवादियों के हाथ लग गयी तो क्या होगा? वही साथ साथ चीन के जो तेवर आज कल दिख रहे वह कहीं से भी भारत के लिए स्सुभ संकेत नहीं है, ऐसे कही ऐसा ना हो कोई अचानक बहुत बड़ी मुसीबत धमके और हम एक दुसरे की टांग खिचाई में ही लगे रह जाए और एक १९६२ के जैसा दंस झेलने को मिले, ऐसे में हमें अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ-साथ अपनी रक्षा निति को कही से बी कमजोर नहीं होने देना है, चूँकि हमारी विदेश नीति किसी देश के खिलाफ कभी नहीं रही है, ऐसे में यदि तिबारा हमें परमाणु परिक्षण की जरुरत है तो जरुर करना चैये क्यूंकि यह हमारी सुरक्षा व्यवस्था का मामला है, कौन क्या सोचता है या सोचेगा इसकी परवाह किये बगैर.

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