ठाकुर अमर सिंह और उनका समाजवाद

अमर सिंह पटकथा का अब जबकि राजनितिक अंत (समाजवादी पार्टी में) हो चूका हैइ ऐसे में एक बात सामने खुलकर आ गयी है की सत्ता में रहकर समाजवाद का पानी पी पी कर दम भरने वाले लोगो का समाजवाद औरखांटी समाजवाद के बीच के समाजवाद का एक समग्र रूप से अवलोकन करना बहुत जरुरी हो गया है, जिससे आम जन मानस को कम से कम सामाजिक समाजवाद और राजनितिक समाजवाद को समझने ज्यादा कठिनाई का सामना न करना पड़े न ही वह लोगो के बहकावे में आ सके I
अब देखते है अमर सिंह का समाजवाद क्या है? अमर सिंह वह अमर सिंह है जो कभी अपने आप को पक्का समाजवादी और लोहियावादी कहलाने में फक्र महसूस करते थे, शायद आज भी करते है I पर वास्तव अमर सिंह तब समाजवादी लोहियावादी हूवा करते थे जब ये समाजवादी पार्टी यानि की मुलायम सिंह की पार्टी में हुवा करते थे I लेकिन समाजवाद क्या है? या समाजवादी क्या होता है सिर्फ पार्टी का नाम समाजवादी रख देने से पार्टी समाजवादी हो गयी या पार्टी में जो लोग सामिल होते है वो समाजवादी हो गए , क्या इस देश में यही स्वरुप है समाजवाद का? मैं इस विषय को बताना जरुरी नहीं समझता की समाजवाद क्या है व इसका स्वरुप क्या है, यह एक बहस का मुद्दा है, लेकिन इतना जरुर कहूँगा की अमर सिंह या मुलायम सिंह या किसी भी सिंह का समाजवाद वह समाजवाद नहीं है जिसकी हम कल्पना करते है या जिस समाजवाद के सिद्द्थान्तो को हमने किताबो पढ़ा है, क्यूंकि ऐसे सिन्धान्तो की रचना करने वालो सालो साल का समय लगाकर एक सिद्धांत ढूंढा व परिकल्पना की जिसमे आमिर-गरीब , उंच-नीच , जात-पांत के लिए कोई जगह न हो न ही होनी चाहिए, शायद मैं इसी समाजवाद को जनता हूँ व यही पढ़ा भी है I
पर माननीय अमर सिंह का समाजवाद तब जगता था जब इनको राजनितिक लाभ लेना होता था जैसे भाजपा के खिलाफ ये समाजवादी थे, दलितों के खिलाफ जब मायावती सर्कार कोई एक्शन नहीं लेती थी या दलितों को अपनी और रिघने का मामला होता था तब ये समाजवादी थे और अगर अपने आपको पक्का समाजवादी और लोकतंत्रवादी साथ ही साथ पंथनिर्पेछ का तमगा भी लेना हो तब मुसलमानों के असली रहनुमाया होने का दम भरते थे , कुल मिलकर मैं साफतौर कहूँगा की भारत में लोग अपने अप को बहुत ही ज्यादा आदर्शवादी घोषित करने में बहुत ज्यादा चिंतित नज़र आते है I इसलिए जब मामला ईद का हो मुस्लिम त्योहारों का हो तो तथाकथित समाजवादी एक टोपी लगाकर पहुँच जाते दावत-इ-खाने में और बन जाते है समज्वादी और पंथनिर्पेछवादी, तो चलो हमें मान भी लेते हैं की आप समाजवादी है,इसका मतलब यह हुवा की आपकी विचारधारा समाजवादी विचारधारा है ? अच्छा है मतलब आप समाजवादी है I पर जैसे ही आपने समाजवादी पार्टी छोड़ी जिस भी कारण से, वैसे ही आपके समाजवाद का स्वरुप भी बदल जाता है , मतलब अब अमरसिंह, ठाकुर अमर सिंह हो गया और उसको यह जगह जगह बताना पड़ रहा है की वह क्षत्रिय कुल में पैदा हुवा है और ठाकुर है , व जहाँ-तहा ठाकुर सम्मलेन करते फिर रहे हैं और तलवारे भांजते नजर आ रहे थे , क्या जिस समाजवाद की आप दुहाई देते थे वह यही समाजवाद था या है ..................क्या अनिल अम्बानी , अमिताभ बच्चन , जाया बच्चन और संजय दत्त और जाया प्रदा ये सभी समाजवादी है , क्या ये बाई नेतर समाजवादी है, या इनको मना कर पटा कर समाजवादी बनाया गया है फिर क्या करना की आप समाजवादी से ठाकुर हो गए ये बिसिनेस क्लास के समाजवादी बिसिनेस्मन बन गए, तो फैनाली आपने यह साबित कर दिया की भारत में समाजवाद या इस तरह के किसी अन्य वाद का कोई मतलब नहीं है, अगर कोई वाद इस देश में लागु होता है तो वह है जातिवाद और भारत का समाजवाद जातिवाद से पार नहीं पाया है , भारत में समाजवाद पंगु है यहाँ के जातिवाद के आगे, और भारत में जातिवादी समाजवाद जिन्दा है न की समाजवाद I क्यूंकि भारत में समाजवादी होने का ढोंग किया जाता है लेकिन होते तो वो जातिवादी ही है, क्यूंकि दलित, मिनोरिटी, आदिवासियो की मुद्दे (सिर्फ उठाकर हल करके के नहीं............क्यूंकि इनके समाजवाद में आशय दिन दुखियों के प्रति पुचकार प्रथा यानि की दूर से पुचकारना नाकि उन्हें गले लगाकर बराबरी का दर्ज़ा देना इनके समाजवाद में बनही आता ) उठा करके ये तो नेता बन जाते है समाजवादी बन जाते है व महान भी बनते है पर जिनके नाम पे ये अपने को समाजवादी का ख़िताब देते हैं, उन्हें कभी अपने समाज का हिस्सा नहीं बनने देते न ही उन्हें मानते है.इतिहास गवाह है इनके ढोंग भरे समाजवाद का , तो ऐसा है इनका समाजवाद I तो ऐसे है मनिया अमर सिंह का जातिवादी समाजवाद और ओनके जातिवादी समाजवादी दोस्तों का स्वरुप..........................................जय जातिवादी समाजवाद ! ! ! ! ! ! अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी विचारधारा में रंगा होता है तो उसक घर बदले से या पार्टी बदलने से या देश बदलने उसके विचारधारा के स्वरुप में कोई बदलाव नहीं आना चाहिये और अगर उसके विचारधारा क्र स्वरुप म किसी भी प्रकार का परिवर्तन आ गया इसका मतलब विचारधारा नाम की कोई ऐसी चीज़ वहां एक्सिस्ट ही नहीं करती.यही कारण की अमर सिंह को को अपनी जातिवादी पहचान को पुनह सुर्विवे करने के लिए जबरदस्ती ओढा गया समाजवाद का कोट तुरंत उतरना पड़ा I

Comments

  1. Dear kuldip ji mujhe lagat hai aap ek Student ho! lekin abhi aap bhi samajwad ko nai jan paye, thik hai Amar singh ek 'Thakur'
    'Kulbhushan' hai aur rahenge
    Kia App kis neta ko samajvadi kahenge? pls tell me AT LEAST One Name?

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  2. bharat m koi bhi samazwadi nahi hai, sabhi jaatiwadi hai...Bhartiya Hindu Sangh ji main ek student hun, aapne sahi pahchana, par kya koi kamii rah gai kya jo aapne aise bola..plz clarify?...thank u

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  3. हमारे देश में कोई भी वाद सफल नहीं है सि‍वाय जाति‍वाद के । यदि‍ कि‍सी दल ने कि‍सी वाद को पकड़ रखा है तो सि‍र्फ अपनी दुकानदारी चलाने के लि‍ये । और वैसे भी कहा गया है कि‍ मध्‍यम मार्ग सबसे उचि‍त मार्ग होता है सफलता प्राप्‍त करने के लि‍ये । देखि‍ये भाजपा का हाल । बेचारी हिंदुत्‍ववाद पर चली । अभी उसकी यह स्‍थि‍ति‍ है कि‍ उसके आधे नेता कट्टर हिंदुत्‍ववाद की वकालत करते हैं तो आधे उसे छोड़ देने की । अब भाजपा आलाकमान स्‍वयं इस द्वंद्व में उलझी है कि‍ क्‍या कि‍या जाये और इसी चक्‍कर में वो सत्ता से ऐसी दूर गयी कि‍ नि‍कट भवि‍ष्‍य में राजपाट मि‍लना मुश्‍कि‍ल लग रहा है। छोटे छोटे क्षेत्रीय राजनीति‍क दल सामान्‍यत: समाजवाद का दामन थामे अपनी दुकान चला रहे हैं । पर वे भी कहां समाजवादी हैं सभी दलों में परि‍वारवाद हावी है । हां कांग्रेस की बात ही कुछ और है । उसने कि‍सी वाद को जोर से पकड़ने के बजाय मध्‍यम मार्ग अपनाया हुआ है इसलि‍ये सैकड़ों कुकर्म करने के बाद भी जनता उसे सत्ता थमा देती है । खराबि‍यों के लि‍हाज से इस पार्टी में हर तरह की बुराई जड़ तक गहराई कि‍ए हुए है पर मध्‍यम मार्ग एक ऐसी दवा उसके पास है कि‍ जनता द्वारा बुरी तरह ठुकराए जाने के बावजूद अंतत: वो सत्ता के करीब पहुंच ही जाती है ।

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