jaswant singh and BJP
जसवंत सिंह का पार्टी से निकला जाना यह साबित करता है का जिन्ना का भूत सिर्फ जसवंत के सर चढ़ कर हे क्यों बोला, और उनको आनन -फानन में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से क्यूँ निकल दिया गया, जिन्ना को सेकुलर कहने वाले अकेले जसवंत सिंह हे तो पहले और आखिर नेता नहीं है, उनसे पहले बी ही तो आडवानी ने भी जीना को महान सेकुलर की उपाधि दी थी, उनको पार्टी से क्यूँ नहीं निकला गया, फिर जसवंत के बाद, सौरी का बयान फिर सुदरसन का बयान, उनपर बीजेपी आलाकमान चुप्पी कुओं लिए हुए है, इसी तरह, बंगारू लाक्स्मन को सिर्फ एक लाख रूपये के एवाज़ में पार्टी से निकल दिया गया, जबकि वही प्रमोद महाजन एक मामूली सी क्लर्क की नौकरी करते हुए पार्टी ज्वाइन की तथा उसने ऐसा क्या पार्टी के लिए कर दिया की वोह एक मामुले क्लर्क से हज़ार करोड़ का मालिक बन बैठा, तब पार्टी ने उसकी जमा पूंजी पे कोई संज्ञान क्यूँ नहीं लिया, सिर्फ कुछ ही लोगो को बलि का बकरा क्यूँ बनाती है, यदि उसकी निति और नियति साफ़ होती तो जो पार्टी की विचारधारा है वह सब पे एक सम्मान लागू होती , सिर्फ कुछ लोगो पर नहीं. असल में बात साफ़ है की जिस हिन्दुतवा की कल्पना बीजेपी ने की थी जिस के दम पइ मंदिर मस्जिद विवाद हुवा व हिन्दू संवेदनशीलता को वह वोटो में तब्दील करने के पश्चात वह सत्ता सुख बाजपाई के नेत्रत्वा में प्राप्त कर सकी वही कट्टरपंथी हिंदुत्वा उनकी गले की फांस बन गया, क्यूंकि अब पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता पार्टी की हिंदुत्वा की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते यही कारन है जो जिन्ना कल तक उनकी नज़र में विलेन था वह अब सेकुलर और एक सच्चा देशभक्त नज़र आने लगा है और अब उनकी नजरमे देश का विभाजन के जिम्मेदार जिन्ना नहीं बल्कि कही न कही वह नेहरु और गाँधी को ठहरा कर अपनी एक सेकुलर इमेज बनाने में तुले है.. वही पर वो लोग जो भाजपा की कट्टरपंथी विचारो से सहमत थे, उनका अब पार्टी से मोह भंग होता जा रहा है और पार्टी का जनाधार भी कम होता जा रहा है, यही कारन है पार्टी का वह तबका जो सिर्फ और सिर्फ राम के नाम पे वोट करता था उनको भी एहसास हो गया है की यह लोग सिर्फ मंदिर के नाम पे राजीनीति कर रहे है इनको मंदिर का मुदा सिर्फ चुनाव के समय हे याद आता है बाकि समय में इन्हे राम और उनकी अयोध्या का पता नहीं रहता, यही कारन है लोकसभा चुनाव में बीजेपी की भरी हार, अब जबकि बीजेपी का जानधार लगातार खिसक रहा है ऐसे में पार्टी के वरिस्थ नेताओं का जिन्ना का सेकुलर बताना उन्हें पार्टी के लिए और खतरनाक साबित होगा, इसलिए न चाहते हुए भी भाजपा फिर से पुरानी हिद्दुत्वा कट्टरपंथ के विचारधारा पे चलने ko मजबूर हो रही है, और अपने ने ही वरिस्थ नेताओ के खिलाफ फैसला लेना पड़ रहा है, ऐसे में एक बात साफ़ नज़र आ रही की की बीजेपी का अंत निकट बभिस्या में अस्वम्भावी है...................................
Comments
Post a Comment